आचार्य श्रीराम शर्मा >> विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँश्रीराम शर्मा आचार्य
|
1 पाठकों को प्रिय 435 पाठक हैं |
विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाये
10
पाँच विशेष कृत्य
साधारणतया हर संस्कार में सामान्य गायत्री यज्ञ का विधान ही प्रमुख होता है। उसकीविधि सब के अभ्यास में रहनी चाहिए। उस विधान में रक्षा विधान के पश्चातृ और अग्नि स्थापना से पूर्व (१) ग्रन्यि बन्धन (२) अश्मारोहण (३) पाणिग्रहण(४) सप्तपदी (५) सुमंगली यह पाँच कृत्य विशेष रूप से करने पड़ते हैं। विवाह दिवसीत्सव का विशेष कृत्य इतना ही है। शेष सारी किया गायत्री यज्ञ की हीरहती है।
(१) पति-पत्नी दोनों के कन्धों पर रहने बाले दुपट्टों के छोरों को लेकर उनकेबीच में चावल, पुष्प, दूर्वा हल्दी, सुपाड़ा रखकर कोई सश्रान्त माननीय व्यक्ति गाँठ बाँधते है। इस क्रिया को ग्रन्थि बन्धन कहते हैं। 'ॐसमंजन्तु विश्वे देवा:......' इसका मंत्र है।
(२) एक पत्थर के टुकड़े पर पति-पत्नी दोनों अपना दाहिना पैर रखते हैं। इसक्रिया का नाम 'अश्वारोहण है। 'ॐ आरोहे मशान...? इसका मंत्र है।
(३) पत्नी का दाहिना हाथ पति और पति का बाँया हाथ पत्नी पकड़ती है। यहपाणिग्रहण क्रिया है। 'ॐ यदेषि मनसा दूरे...... ' यह इसका मंत्र है।
(४) पति-पत्नी कदम मिलाकर सात बार पैर उठाते है। सात कदम साथ-साथ चलते है। 'ॐ इमे एक पदीयव....' इसका मंत्र है।
(५) पति द्वारा पत्नी की माँग में सिन्दूर भरने अथवा मस्तक पर तिलक करने कीक्रिया को सुमगली कहते हैं। इसका मंत्र 'ॐ सुमंगलीरियं वधू....' है।
|
- विवाह प्रगति में सहायक
- नये समाज का नया निर्माण
- विकृतियों का समाधान
- क्षोभ को उल्लास में बदलें
- विवाह संस्कार की महत्ता
- मंगल पर्व की जयन्ती
- परम्परा प्रचलन
- संकोच अनावश्यक
- संगठित प्रयास की आवश्यकता
- पाँच विशेष कृत्य
- ग्रन्थि बन्धन
- पाणिग्रहण
- सप्तपदी
- सुमंगली
- व्रत धारण की आवश्यकता
- यह तथ्य ध्यान में रखें
- नया उल्लास, नया आरम्भ